भगवान बनने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है| Even to become God, one has to struggle.

हम सभी जीवन में भगवान की आराधना करते हैं, उनके नाम का जाप करते हैं, उनकी आरती उतारते हैं। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि जिनके गुणों को हम गाते हैं, क्या वे हमारे जीवन में भी दिखाई देते हैं?

यह लेख हमें यही सिखाता है कि सिर्फ भगवान की पूजा करना पर्याप्त नहीं, उनके जैसे गुणों को अपने जीवन में उतारना भी उतना ही आवश्यक है।


1. दुख का असली कारण: हमारी प्रतिक्रिया

हमारे दुखों की जड़ हमारी अपनी ही प्रतिक्रियाएं हैं।

  • जब हम क्रोध में आकर किसी को कुछ कह देते हैं, तो बाद में पछतावा होता है।

  • अगर किसी को नाराज़गी में पत्र लिखें और उसे कुछ दिन भेजने से रोक दें, तो कुछ ही दिनों में हमें अपने शब्द ही अनुचित लगने लगते हैं।

  • इसलिए सज्जनता और संयम ही सच्चे समाधान हैं।


2. सजगता बनाम बेहोशी

लेख में बहुत सुंदर ढंग से बताया गया है कि संसार में जितने भी अपराध होते हैं – हत्या, बलात्कार, झगड़े – सब बेहोशी में होते हैं।

  • एक ही पाप है: बेहोशी

  • एक ही पुण्य है: सजगता
    ध्यान और जागरूकता से ही हम अपने भीतर की अशांति को शांत कर सकते हैं।


3. सत्य कहने की कला

कई बार लोग कहते हैं – “मैं तो सिर्फ सच ही कहता हूँ, और सच कड़वा होता है।”
परन्तु, सच को चिल्ला कर कहने की ज़रूरत नहीं होती।

  • यदि आपको चिल्लाना पड़े तो वह अपूर्ण सत्य है या छुपा हुआ झूठ

  • सत्य अपने आप में इतना प्रभावशाली होता है कि उसे धीरे से कहा जाए तो भी असर करता है।


4. ईर्ष्या का सूक्ष्म भाव

एक कहानी के माध्यम से बताया गया कि जब हम अपनी वस्तुएं किसी और को देते हैं और वह हमसे बेहतर दिखता है या आगे बढ़ता है, तो अहंकार और ईर्ष्या सिर उठाने लगते हैं।

  • यह स्वभाविक है, परंतु इसे स्वीकार करके सुधारना ही सच्ची आध्यात्मिकता है।


5. भगवान के जीवन से सीख

हम राम और कृष्ण की पूजा करते हैं, लेकिन

  • क्या हमने राम के समान समता और त्याग को अपनाया है?

  • क्या हमने कृष्ण की तरह विवेक और युद्धकला को जीवन में उतारा है?

राम ने राजपाठ त्याग कर वनवास स्वीकार किया, फिर भी एकरसता और शांति में रहे। कृष्ण ने केवल बांसुरी नहीं बजाई, सुदर्शन चक्र भी चलाया


6. जीवन है एक मिश्रित थाली

क्या कभी आपके खाने की थाली में सिर्फ खीर होती है? नहीं।

  • उसमें तीखा, मीठा, नमकीन सब होता है – तभी स्वाद आता है।

  • ठीक वैसे ही जीवन भी सुख-दुख, हानि-लाभ, मिलन-वियोग का मिश्रण है

  • केवल सुख की कामना करना व्यर्थ है, क्योंकि सुख की अनुभूति तभी होती है जब दुःख भी हो।


7. दुख की जरूरत क्यों है?

एक सवाल अक्सर उठता है – “भगवान ने दुख क्यों बनाए?”
उत्तर है –

दुःख की काली स्लेट पर ही सुख की सफेद खड़िया नजर आती है।
अगर वियोग न हो, तो संयोग का रस भी फीका लगेगा।


8. इच्छाओं के वश में नहीं, ईश्वर के इशारे पर चलो

आजकल लोग अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर नाचते हैं – राजनीति हो या निजी जीवन।

  • सच्ची शक्ति यह नहीं कि आप दुनिया को नचा सकें,

  • सच्ची शक्ति यह है कि आप अपनी इन्द्रियों, अपने मन को नचा सकें।


निष्कर्ष: आराधना से आगे बढ़ो – आत्म-रूपांतरण की ओर

भगवान बनने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

  • उनके जीवन में भी विषाद, युद्ध, त्याग और तपस्या थे।

  • यदि हम केवल उनका नाम लें लेकिन उनके गुण न अपनाएं, तो पूजा अधूरी है।

इसलिए अपने जीवन में सजगता, समता, विवेक, धैर्य और समर्पण लाएं –
तभी आराधना का सच्चा प्रभाव हमारे जीवन में दिखाई देगा।

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *