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What do saints and great men give? क्या देते है संत – महापुरुष ?

जीवन में जो कुछ भी सद्गुरू से मिलता है उसकी किसी भी अन्य वस्तु से तुलना नहीं हो सकती। जैसे गंगाजी के प्रवाह की किसी छोटे-मोटे नदी-नाले से तुलना नहीं हो सकती।

सद्गुरू ने क्या दिया? वो दिया जो अलौकिक है। आप विश्व भर के सन्त-महात्माओं और ऋषियों के बिना इस संसार को देखो कि फिर वो कैसा है। अगर महर्षि कपिल, कणाद नहीं हैं, अगस्त ऋषि की परम्परा नहीं है, अगर वसिष्ठ जी और विश्वामित्र जी नहीं हैं, बाबा तुलसीदास नहीं हैं, दादू नहीं हैं, पल्टू नहीं हैं, बाबा गुरूनानक देव नहीं हैं, अगर समर्थ गुरू रामदास नहीं हैं, यदि रामकृष्ण परमहंस ना हों, तो फिर देखो कि ये संसार कैसा होता? ऋषि-मुनियों की परम्परा को अलग कर दो तो फिर संसार कुछ और ही दिखाई देगा। तब संसार दुःख और हताशा जीवन निकल गया तो जीने का ढंग आया जब शमां बुझ गई तो महफिल में रंग आया मन की मशीनरी ने तब ठीक चलना सीखा जब बूढ़े तन के हरेक पुर्जे में जंग आया गाड़ी निकल गई तब घर से चला मुसाफिर मायूस हाथ मलता बेरंग घर को आया फुर्सत के वक्त में ना सुमिरन का वक्त मांगा उस वक्त, वक्त मांगा, जब वक्त तंग आया आयु ने नत्थासिंह जब हथियार फेंक डाले यमराज फौज लेकर करने को जंग आया।

परन्तु यदि जीवन में सद्गुरू का पर्दापण हो गया, तब प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। अपने नहीं अपितु सद्गुरू के अनुभवों से सीखो। दुःखों का कारण कोई बाहरी नहीं बल्कि तुम्हारे अन्तर्मन में बैठी हज़ारों तमन्नाएँ हैं। आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के शोर में कहीं पैर टिकाने की जगह नहीं है तुम्हारे भीतर। पहले कहते थे कि दीदी माँ, हमारे मित्र और बंधु हमें बहुत प्यार करते हैं। लेकिन आजकल मुँह क्यों लटकाये घूमते ‘भाई? क्योंकि अब पहले जैसा धंधा नहीं चल रहा इसीलिए सारे रिश्ते-नाते दूर हो गए।

एक नेताजी चुनाव हार गए। हमने उनका हाल देखकर पूछा कि ‘भाई, इतने ‘श्रीहीन’ क्यों दिखलाई देते हो?” वो कहने लगे कि ‘दीदी माँ, पहले इतने लोगों में घिरा रहता था, अब मेरे पास एक मक्खी भी नहीं आती।’ मैंने कहा कि ‘भाई, जब शहद ही नहीं बचा तो मक्खियाँ क्यों आएंगी तुम्हारे पास जो पहले आते थे वो तुम्हारे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे पद की परिक्रमा करने के लिए आते थे। वह पद, जिसके कारण उनके बहुत सारे काम बन सकते थे। अब जो चले गए, उनके लिए रोओ मत और आज जो तुम्हारे साथ हैं उन्हें पहचानों वो केवल तुम्हें स्नेह करते हैं, तुम्हारे पद को नहीं जो आज तुम्हारे साथ हैं बस उन्हीं के लिए एहसास से भर जाओ। जो बेवजह केवल स्नेह के वशीभूत तुम्हारे साथ हैं, वे ही सच्चे हैं।’

अगर अपने प्रियतम को पाना है तो कहाँ से यात्रा शुरू करोगे? आप ही के मूलाधार में तो पड़ी है वो सुप्त चेतना, जिसको जाग्रत करने के बाद वो मिलेगा जिसे आप पाना चाहते हो। अन्तर्यात्रा करो। अपने अंदर पड़ी ग्रन्थियों का बेधन करो। अपने अन्तःकरण को पवित्र करो। जब यह होगा तो फिर ‘ओंकार’ का अनाहत नाद भीतर से सुनाई देगा। धन्य हो जाओगे । कृतार्थ हो जाओगे। कौन है जो तुम्हें अपनी सुप्त चेतना को जाग्रत करने का मार्ग बतायेगा? वो है सद्गुरू। वो हैं सन्तों के वचन हैं, सन्तों की वाणी। इसीलिए हमारे यहाँ बहुत ही प्यारे शब्दों से सद्गुरू को पुकारते हैं। हमारे मालिक हैं, हमारे सद्गुरू हैं, हमारे सर्वेश्वर हैं, हमारे भगवान् हैं। हमने ईश्वर को तो नहीं देखा लेकिन अपने सद्गुरू को ईश्वर से कम भी नहीं देखा। लेकिन कैसे बैठोगे गुरू के पास? उसके लिए श्रद्धा चाहिए, सबूरी चाहिए, समर्पण चाहिए, धैर्य चाहिए, कुटने-पिटने का साहस चाहिए। इसके अभाव में बहुत सारे तो छिटककर गुरू से दूर भाग जाते हैं। दुनिया क्या जाने कि हम कैसे हैं लेकिन स्वयं को अपने से अच्छा भला और कौन जान सकता है। हम जान सकते हैं अपनी श्रद्धा को अपनी निष्ठा को भाग्यशाली होते हैं वो लोग जो सद्गुरू के चरणों में केवल तत्वज्ञान पाने के लिए, निष्ठा और श्रद्धा के साथ आ बैठते हैं।

कितनों में ध्यान भटका है। क्या-क्या नहीं आता दिल में संतों ने कहा कि बहुत प्रकार के स्नान होते हैं। एक काया स्नान होता है

– चाहे गंगा में डुबकी लगाइये अथवा बाथरूम में नल खोलकर उसके नीचे खड़े हो जाईये। दूसरा होता है मंत्र स्नान इसमें हम मंत्रों का जाप करते हुए अपनी शुद्धि करते हैं, और तीसरा मानस स्नान – यह सद्गुरू के चरण कमलों का स्मरण करते समय होता है। आपने जल से अपना तन धोया फिर मंत्र से स्नान किया और उसके बाद मानस स्नान होना चाहिए। मल-मलकर नहाते हैं लेकिन हमसे ज्यादा समय तक तो भैंसे नहाती हैं। वो हमेशा तालाबों में ही पड़ी रहती हैं! मछलियों और कछुओं जैसे जलचरों का तो जीवन ही पानी में बीतता है!

शरीर शुद्धि के साथ ही सद्गुरू के दिये गए नाम का नित्य प्रति सुमिरन और अभ्यास करो अर्थात् मानस स्नान करो। यदि इतना भी नहीं बनता तो फिर सुबह आँखें खुलते ही अपने गुरूदेव के चरणों का ध्यान करो। अपने इष्टदेव का स्मरण करो। सज्जनों, संत-महापुरुषों का स्मरण करो। कहते हो ना कि दीदी माँ, हम तो बहुत सताये हुए हैं जमाने के। किसने सताया तुम्हें? बहू बहुत सताती है, बच्चे बहुत सताते हैं, ऑफिस में बॉस ऐसा पल्ले पड़ गया जो बहुत सताता है। जो पत्नी पहले बड़ी प्यारी लगती थी वो देखते ही देखते दुष्टा स्त्री में बदल गई। अब दिन-रात सताती है। अगर तुम सताने वालों की लिस्ट बनाओगे तो वो पता नहीं कहाँ तक जाएगी।

केवल शरीर की आँखों से देखकर बात नहीं बनेगी। अपने विवेक की आँखों से देखो, अपने दिल की आँखों से देखो। यदि नहीं देख पाते इन सबसे, तो कम-से-कम अपने सद्गुरू की आँखों से ही देख लो। सच्चाई का दर्शन हो जायेगा। हम जहाँ पर राहत को तलाश रहे हैं वो रास्ता राहत का है नहीं। आज मैं कुछ लोगों से चर्चा कर रही थी कि जिंदगी के अनुभव बहुत कुछ सिखाते हैं। यदि आप समझदार हो तो फिर धीरे-धीरे आपकी अपेक्षाएँ कम होती चली जाती हैं। लोग हमें तब सताते हुए प्रतीत होते हैं जब हमें उनसे कोई आशा होती है। यदि उन आशाओं को लपेटकर एक तरफ रख दो तो फिर देखोगे कि तुम्हें कोई नहीं सता रहा। अगर हम तरीके से जिएँ तो जिंदगी का एक ऐसा मोड़ आता है जहाँ हमें समझ आ जाती है। हम जरा भी होश से यदि वस्तुओं को देखें, इंसानों को देखें, परिस्थितियों को देखें तो समझ में आ जायेगा कि सताने वाला कोई दूसरा नहीं है। संसार का कोई व्यक्ति या वस्तु आपको दुःख नहीं दे सकती। इन दुःखों को किसने खड़ा किया?

एक दिल लाखों तमन्ना, 
उसपे और ज्यादा हविस। 
फिर कहाँ है ठिकाना, 
उसके टिकाने के लिए।
दिल का हुजरा साफ कर,
जानां के आने के लिए

बेचारा एक ही दिल तो है। लेकिन दिल है कि मानता नहीं। लंबी लिस्ट है तमन्नाओं की ये नशा चढ़ा रहेगा लंबे समय तक। लेकिन जब उतरेगा, जब होश आएगा तब पता चलेगा कि जिंदगी हाथ से सरक गई। मैं अक्सर कहा करती हूँ कि जीवन निकल गया तो जीने का ढंग आया जब शमां बुझ गई तो महफिल में रंग आया मन की मशीनरी ने तब ठीक चलना सीखा जब बूढ़े तन के हरेक पुर्जे में जंग आया गाड़ी निकल गई तब घर से चला मुसाफिर मायूस हाथ मलता बेरंग घर को आया फुर्सत के वक्त में ना सुमिरन का वक्त मांगा उस वक्त, वक्त मांगा, जब वक्त तंग आया आयु ने नत्थासिंह जब हथियार फेंक डाले यमराज फौज लेकर करने को जंग आया।

परन्तु यदि जीवन में सद्गुरू का पर्दापण हो गया, तब प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। अपने नहीं अपितु सद्गुरू के अनुभवों से सीखो। दुःखों का कारण कोई बाहरी नहीं बल्कि तुम्हारे अन्तर्मन में बैठी हज़ारों तमन्नाएँ हैं। आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के शोर में कहीं पैर टिकाने की जगह नहीं है तुम्हारे भीतर। पहले कहते थे कि दीदी माँ, हमारे मित्र और बंधु हमें बहुत प्यार करते हैं। लेकिन आजकल मुँह क्यों लटकाये घूमते ‘भाई? क्योंकि अब पहले जैसा धंधा नहीं चल रहा इसीलिए सारे रिश्ते-नाते दूर हो गए।

एक नेताजी चुनाव हार गए। हमने उनका हाल देखकर पूछा कि ‘भाई, इतने ‘श्रीहीन’ क्यों दिखलाई देते हो?” वो कहने लगे कि ‘दीदी माँ, पहले इतने लोगों में घिरा रहता था, अब मेरे पास एक मक्खी भी नहीं आती।’ मैंने कहा कि ‘भाई, जब शहद ही नहीं बचा तो मक्खियाँ क्यों आएंगी तुम्हारे पास जो पहले आते थे वो तुम्हारे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे पद की परिक्रमा करने के लिए आते थे। वह पद, जिसके कारण उनके बहुत सारे काम बन सकते थे। अब जो चले गए, उनके लिए रोओ मत और आज जो तुम्हारे साथ हैं उन्हें पहचानों वो केवल तुम्हें स्नेह करते हैं, तुम्हारे पद को नहीं जो आज तुम्हारे साथ हैं बस उन्हीं के लिए एहसास से भर जाओ। जो बेवजह केवल स्नेह के वशीभूत तुम्हारे साथ हैं, वे ही सच्चे हैं।’

अगर अपने प्रियतम को पाना है तो कहाँ से यात्रा शुरू करोगे? आप ही के मूलाधार में तो पड़ी है वो सुप्त चेतना, जिसको जाग्रत करने के बाद वो मिलेगा जिसे आप पाना चाहते हो। अन्तर्यात्रा करो। अपने अंदर पड़ी ग्रन्थियों का बेधन करो। अपने अन्तःकरण को पवित्र करो। जब यह होगा तो फिर ‘ओंकार’ का अनाहत नाद भीतर से सुनाई देगा। धन्य हो जाओगे । कृतार्थ हो जाओगे। कौन है जो तुम्हें अपनी सुप्त चेतना को जाग्रत करने का मार्ग बतायेगा? वो है सद्गुरू। वो हैं सन्तों के वचन हैं, सन्तों की वाणी। इसीलिए हमारे यहाँ बहुत ही प्यारे शब्दों से सद्गुरू को पुकारते हैं। हमारे मालिक हैं, हमारे सद्गुरू हैं, हमारे सर्वेश्वर हैं, हमारे भगवान् हैं। हमने ईश्वर को तो नहीं देखा लेकिन अपने सद्गुरू को ईश्वर से कम भी नहीं देखा। लेकिन कैसे बैठोगे गुरू के पास? उसके लिए श्रद्धा चाहिए, सबूरी चाहिए, समर्पण चाहिए, धैर्य चाहिए, कुटने-पिटने का साहस चाहिए। इसके अभाव में बहुत सारे तो छिटककर गुरू से दूर भाग जाते हैं। दुनिया क्या जाने कि हम कैसे हैं लेकिन स्वयं को अपने से अच्छा भला और कौन जान सकता है। हम जान सकते हैं अपनी श्रद्धा को अपनी निष्ठा को भाग्यशाली होते हैं वो लोग जो सद्गुरू के चरणों में केवल तत्वज्ञान पाने के लिए, निष्ठा और श्रद्धा के साथ आ बैठते हैं।

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A.D.V.A.N.C.E : वसुधैव कुटुंबकम् की ओर एक कदम | वात्सल्यग्राम | न्यूटाउन सांस्कृतिक संगम

“वसुधैव कुटुंबकम्” – सम्पूर्ण विश्व एक परिवार 🌿

“अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥”

अर्थ:
छोटे हृदय वाले लोग अपने और दूसरों में भेद करते हैं, लेकिन उदार हृदय वाले व्यक्ति सम्पूर्ण विश्व को ही अपना परिवार मानते हैं।

💫 वात्सल्यग्राम प्रस्तुत करता है – “A.D.V.A.N.C.E.” 💫
(A Dynamic Vatsalyagram and Newtown Cultural Exchange)

✨ एडवांस – केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन और एक नई दिशा है।
यह कार्यक्रम परम पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी द्वारा प्रारंभ किया गया था और यह वात्सल्यग्राम की दिव्यता और न्यूटाउन की सांस्कृतिक विविधता का एक अद्भुत संगम है, जहाँ प्रेम, सेवा, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक समृद्धि का मिलन होगा।

💖 विदाई समारोह – एक भावनात्मक क्षण
जब न्यूटाउन के हमारे प्रिय अतिथि यहाँ बिताए गए पलों को अपने हृदय में संजोकर विदा होंगे, तो यह केवल एक विदाई नहीं होगी, बल्कि दो स्थानों के बीच आत्मीय जुड़ाव का सेतु बनेगा। यह एक नए मित्रता संबंध, सांस्कृतिक साझेदारी और आध्यात्मिक ऊर्जा का आरंभ होगा।

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The Importance of a Guru: How to Find Your Spiritual Guide

गुरु का महत्व: जानें कैसे ढूंढें अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक

हमारे जीवन में गुरु का महत्व अद्वितीय और अतुलनीय है। गुरु वह प्रकाशपुंज हैं, जो हमारे जीवन के अंधकार को दूर करके ज्ञान, प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान स्थान दिया गया है। शास्त्रों में कहा गया है:

“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।”

इस मंत्र में गुरु को ईश्वर का प्रतीक माना गया है। गुरु की महिमा अनंत है और वे हमें सत्य, धर्म और आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। आइए, इस लेख में हम जानें कि गुरु का महत्व क्यों है और सही आध्यात्मिक मार्गदर्शक को कैसे खोजा जाए।


गुरु का महत्व: जीवन में गुरु क्यों जरूरी हैं?

  1. आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना
    गुरु हमें भौतिकता के अंधकार से बाहर निकालकर आत्मा के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। वे हमें यह समझने में मदद करते हैं कि हमारा वास्तविक उद्देश्य क्या है और हम अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर कैसे ले जा सकते हैं।

  2. मोह-माया से मुक्ति
    हमारी सांसारिक इच्छाएं और मोह-माया हमें अपने सत्य स्वरूप से दूर ले जाती हैं। गुरु हमें इन बंधनों से मुक्त करने में सहायक होते हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हम अपनी आत्मा के साथ जुड़ सकते हैं।

  3. संघर्षों का समाधान
    जीवन में जब भी हम समस्याओं और संघर्षों से घिरे होते हैं, गुरु हमें सही निर्णय लेने और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की सलाह देते हैं। उनकी शिक्षा हमारे लिए मार्गदर्शक होती है।

  4. ज्ञान का स्रोत
    गुरु से हमें न केवल बाहरी संसार का ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि आत्मज्ञान भी मिलता है। वे हमारे भीतर सोए हुए ज्ञान को जागृत करते हैं और हमें सच्चाई से जोड़ते हैं।


कैसे ढूंढें सही आध्यात्मिक मार्गदर्शक?

सही गुरु की खोज एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह प्रक्रिया धैर्य, समर्पण और आस्था की मांग करती है। यहां कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं, जो आपकी इस यात्रा में सहायक हो सकते हैं:

  1. आत्मा की पुकार को सुनें
    गुरु की खोज के लिए सबसे पहले अपनी आत्मा की पुकार को सुनें। जब आप सच्चे हृदय से मार्गदर्शन चाहते हैं, तो ब्रह्मांड आपको सही दिशा दिखाता है।

  2. गहरी आध्यात्मिक साधना करें
    ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से अपने भीतर की शांति को खोजें। यह शांति आपको गुरु के सच्चे स्वरूप को पहचानने में मदद करेगी।

  3. गुरु के गुणों पर ध्यान दें
    सही गुरु के पास कुछ विशेष गुण होते हैं, जैसे:

    • उनका जीवन आदर्श और प्रेरणादायक होता है।
    • वे सभी के प्रति करुणामय और सहृदय होते हैं।
    • उनकी शिक्षा में सच्चाई और सरलता होती है।
    • वे किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि मानवता की भलाई के लिए कार्य करते हैं।
  4. संदेह को दूर करें, आस्था रखें
    गुरु के प्रति पूर्ण विश्वास और आस्था रखना आवश्यक है। लेकिन, इस आस्था से पहले उनकी शिक्षाओं और उनके व्यक्तित्व का परीक्षण करें।

  5. सही समय का इंतजार करें
    जब समय सही होता है, तो गुरु अपने शिष्य के जीवन में प्रकट होते हैं। इसलिए धैर्य रखें और अपनी साधना को जारी रखें।


गुरु-शिष्य संबंध का महत्व

गुरु और शिष्य का संबंध पवित्र और आत्मिक होता है। यह केवल ज्ञान देने और लेने का संबंध नहीं है, बल्कि यह दो आत्माओं के मिलन का प्रतीक है। जब शिष्य पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ गुरु की शिक्षाओं का पालन करता है, तो उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

गुरु की शिक्षा तभी प्रभावी होती है, जब शिष्य अपने अहंकार को त्यागकर विनम्रता के साथ सीखने के लिए तैयार होता है। गुरु न केवल हमारे जीवन में मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि वे हमें भगवान तक पहुंचने का साधन भी प्रदान करते हैं।


निष्कर्ष

गुरु का महत्व हमारे जीवन में अमूल्य है। वे हमारे भीतर छिपी असीम शक्ति और ज्ञान को जागृत करते हैं और हमें ईश्वर के निकट ले जाते हैं। सही गुरु की खोज में समय लग सकता है, लेकिन जब आप सच्चे दिल से खोज करेंगे, तो ब्रह्मांड आपको सही मार्ग पर ले जाएगा।

आइए, हम सभी अपने जीवन में गुरु के महत्व को समझें और उनकी शिक्षाओं का पालन करके अपने जीवन को उज्जवल बनाएं।

“गुरु बिना ज्ञान नहीं, गुरु बिना मुक्ति नहीं।
गुरु ही हैं जो हमें स्वयं से मिलाते हैं।”

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The Importance of Bhagwat Katha: Discover How It Brings Inner Peace

In the fast-paced world we live in, spiritual practices and stories rooted in ancient traditions have the power to ground us, offering solace and inner peace. Among these practices, Bhagwat Katha, a recitation of the sacred Shrimad Bhagwat Mahapuran, holds profound significance. It is more than a storytelling session; it is a journey into spiritual awakening, cultural richness, and emotional healing. Let us delve deeper into the importance of Bhagwat Katha and understand how it fosters a serene mind and an enriched soul.


What Is Bhagwat Katha?

Bhagwat Katha is the recital and explanation of the Shrimad Bhagwat Mahapuran, an ancient scripture dedicated to Lord Vishnu and his avatars, especially Lord Krishna. This sacred text contains invaluable teachings that address the purpose of life, the path to devotion, and the principles of dharma. Delivered by an experienced narrator, or kathavachak, Bhagwat Katha is traditionally conducted over seven days, often in an atmosphere infused with devotion and spirituality.


The Historical and Cultural Significance of Bhagwat Katha

The origins of Bhagwat Katha date back thousands of years, rooted in Vedic traditions. This scripture was composed to convey profound spiritual knowledge through stories that resonate with individuals from all walks of life. It acts as a cultural bridge, preserving Indian traditions while educating and inspiring generations.

The storytelling format ensures accessibility for people of varying literacy levels, allowing everyone to imbibe the essence of dharma and devotion.


How Bhagwat Katha Provides Inner Peace

1. A Spiritual Retreat for the Mind

Listening to Bhagwat Katha transports the audience into a world of divinity and tranquility. The stories, interwoven with teachings of compassion, humility, and love, help attendees disconnect from the chaos of daily life. This spiritual retreat rejuvenates the mind, promoting clarity and calmness.

2. Deep Connection with Divine Teachings

The Katha emphasizes the teachings of Lord Krishna, particularly the values of surrender, detachment, and selfless service. By meditating on these principles, individuals find solace in the divine and experience a deeper connection with their own spirituality.

3. Emotional Cleansing and Stress Relief

Bhagwat Katha has a cathartic effect on the listener. The recitation often brings out deep-seated emotions, leading to emotional cleansing. Participants feel lighter, more focused, and less burdened by stress or anxiety.

4. Meditation Through Listening

The rhythmic chanting and melodious hymns that accompany the narration induce a meditative state. This not only calms the mind but also aids in mindfulness, helping participants focus on the present moment.


Bhagwat Katha as a Path to Self-Realization

1. Understanding the True Purpose of Life

One of the core teachings of the Bhagwat Mahapuran is to help individuals realize the ultimate goal of life—liberation or moksha. Bhagwat Katha delves into questions of existence, inspiring the audience to reflect on their life purpose and align it with spiritual goals.

2. Breaking Free from Material Attachments

Material attachments often lead to suffering. Bhagwat Katha emphasizes detachment and encourages participants to live a life of simplicity and contentment. The stories of devotees like Prahlad and Dhruva exemplify unwavering faith in God, teaching us how to overcome worldly distractions.

3. Cultivating Virtues

The scripture inspires virtues like patience, devotion, compassion, and forgiveness. These qualities help individuals improve their interpersonal relationships and foster a peaceful inner world.


The Social and Community Benefits of Bhagwat Katha

1. Strengthening Community Bonds

Bhagwat Katha is often organized as a communal event, bringing together people from diverse backgrounds. This shared spiritual experience fosters unity, love, and a sense of belonging among participants.

2. Spreading Positivity

The messages of love, humility, and generosity shared during the Katha instill positive energy in the community. This uplifting atmosphere often inspires collective acts of kindness and charity.


The Role of Bhagwat Katha in Modern Times

In today’s digital age, where mental health challenges and social isolation are prevalent, Bhagwat Katha serves as a beacon of hope. It addresses the existential crises of the modern individual, offering ancient wisdom as a remedy for contemporary struggles.

Through online platforms, live streams, and recorded sessions, Bhagwat Katha has adapted to modern technology, making it accessible to a global audience.


How to Participate in Bhagwat Katha

1. Find a Local or Online Event

Many temples and spiritual organizations host Bhagwat Katha events. You can also find virtual sessions on platforms like YouTube, enabling participation from the comfort of your home.

2. Immerse Yourself with an Open Heart

Approach the Katha with an open and receptive mind. Absorb the teachings and reflect on their relevance to your life.

3. Integrate Teachings into Daily Life

After attending, try to incorporate the values and lessons from Bhagwat Katha into your everyday actions. Even small changes in attitude and behavior can lead to a more peaceful life.


Conclusion

Bhagwat Katha is a timeless spiritual practice that transcends boundaries, offering wisdom, peace, and clarity to those who engage with it. By immersing ourselves in its teachings, we not only find inner peace but also contribute to a more harmonious society. Whether through live events or digital platforms, the transformative power of Bhagwat Katha continues to guide humanity toward a path of self-realization and divine connection.

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द आर्ट ऑफ माइंडफुलनेस: हाउ टू लिव इन प्रेजेंट मोमेंट

आज की तेजी से भागती दुनिया में, दैनिक जीवन की हलचल में फंसना आसान हो सकता है। हम अक्सर खुद को ऑटोपायलट पर दौड़ते हुए पाते हैं, वास्तव में हमारे आसपास क्या चल रहा है, इस पर ध्यान दिए बिना गतियों से गुजरते हुए। हम शारीरिक रूप से मौजूद हो सकते हैं, लेकिन मानसिक रूप से हम पूरी तरह से कहीं और हैं।

ध्यानावस्था पल में पूरी तरह से उपस्थित होने और विचारों और भावनाओं पर ध्यान देने का अभ्यास है। यह तनाव को कम करने, मूड में सुधार करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। यहां बताया गया है कि आप अपने माइंडफुलनेस अभ्यास को कैसे विकसित कर सकते हैं और वर्तमान क्षण में जीना शुरू कर सकते हैं।

अपनी सांस पर ध्यान दें
माइंडफुलनेस का अभ्यास करने के सबसे सरल तरीकों में से एक है अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करना। आराम से बैठें, अपनी आँखें बंद करें, और अपनी सांस पर ध्यान दें क्योंकि यह आपके शरीर के अंदर और बाहर चलती है। ध्यान दें कि यह कैसा महसूस होता है, यह कैसा लगता है, और जब आप सांस लेते हैं तो आपके शरीर में संवेदनाएं होती हैं। जब आपका मन भटक जाए, तो उसे धीरे से अपनी सांसों पर वापस लाएं।

अपनी इंद्रियों पर ध्यान केंद्रित करना
माइंडफुलनेस का अभ्यास करने का एक और तरीका है अपनी इंद्रियों को ट्यून करना। अपने आस-पास के स्थलों, ध्वनियों, गंधों, स्वादों और संवेदनाओं पर ध्यान दें। अपने भोजन का स्वाद चखने के लिए समय निकालें, अपनी त्वचा पर सूर्य की गर्मी महसूस करें और वास्तव में प्रकृति की आवाज़ सुनें। अपनी इंद्रियों पर ध्यान देकर आप खुद को पूरी तरह से वर्तमान क्षण में ले आते हैं।

विषय निरपेक्ष बने
ध्यानाभ्यास आपके विचारों या भावनाओं को पहचानने के बारे में नहीं है। यह उन्हें पकड़े बिना उनका अवलोकन करने के बारे में है। जब आप देखते हैं कि कोई विचार या भावना उत्पन्न होती है, तो बस इसे स्वीकार करें और इसे जाने दें। इसे अच्छे या बुरे के रूप में न आंकें, जैसा है वैसा ही देखें।

कृतज्ञता का अभ्यास करें
कृतज्ञता सचेतनता के विकास के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। जिन चीजों के लिए आप आभारी हैं, उन्हें प्रतिबिंबित करने के लिए प्रत्येक दिन समय निकालें। यह सुंदर सूर्यास्त या चाय के गर्म कप जितना सरल हो सकता है। अपने जीवन में अच्छाई पर ध्यान केंद्रित करके, आप अपनी मानसिकता को सकारात्मकता और आनंद की ओर ले जा सकते हैं।

जीवन की गति को कम करें
हमारी तेज़-तर्रार दुनिया में, धीमी गति से चलना और चीजों को इत्मीनान से गति देना मुश्किल हो सकता है। लेकिन ऐसा करके, आप बौद्धिकता का परिचय दे सकते है । अपने भोजन का आनंद लेने के लिए समय निकालें, इत्मीनान से टहलें, या बस बैठें और एक कप चाय का आनंद लें। धीमा करके, आप अपने आप को पल में उपस्थित होने का स्थान देते हैं।

आत्म-करुणा का अभ्यास करें
यह अपने आप के प्रति दयालु होने और आप जैसे हैं वैसे ही खुद को स्वीकार करने के बारे में है। जब आप खुद को नकारात्मक विचारों या आत्म-निर्णय में फंसते हुए देखते हैं, तो एक कदम पीछे हटें और आत्म-करुणा का अभ्यास करें।

विकर्षणों को छोड़ दें
हमारी आधुनिक दुनिया में, सोशल मीडिया से लेकर हमारे फोन पर लगातार सूचनाओं तक हर जगह ध्यान भंग होता है। दिमागीपन विकसित करने के लिए, इन विकर्षणों को छोड़ना और वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी से डिस्कनेक्ट करने के लिए प्रत्येक दिन अलग समय निर्धारित करें और बस अपने आस-पास की दुनिया में मौजूद रहें।

तनाव को नियंत्रित करने के लिए, अपनी बुद्धि का सही उपयोग करें
दिमागीपन तनाव के प्रबंधन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है। जब आप अभिभूत या चिंतित महसूस करें, तो गहरी सांस लेने या ध्यान लगाने के लिए कुछ समय निकालें। अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करके और अपने दिमाग को वर्तमान क्षण में वापस लाकर आप तनाव और चिंता को कम कर सकते हैं।

रोजमर्रा की गतिविधियों में दिमागीपन का अभ्यास करें
आपको दिमागीपन अभ्यास के लिए विशिष्ट समय निर्धारित करने की ज़रूरत नहीं है। आप बर्तन धोने, कुत्ते को टहलाने, या यहाँ तक कि अपने दाँत ब्रश करने जैसी रोज़मर्रा की गतिविधियों में सचेतनता का अभ्यास कर सकते हैं। इन गतिविधियों की संवेदनाओं और अनुभवों पर ध्यान देकर आप अपने दैनिक जीवन में अधिक उपस्थिति और जागरूकता पैदा कर सकते हैं।

प्रकृति से जुड़ें
प्रकृति में समय व्यतीत करना दिमागीपन पैदा करने का एक शक्तिशाली तरीका हो सकता है। पार्क में टहलें, जंगल में टहलें, या बस बाहर बैठें और प्रकृति की आवाज़ सुनें। प्राकृतिक दुनिया से जुड़कर, आप अपने आप को पूरी तरह से वर्तमान क्षण में ला सकते हैं और शांति और शांति की एक बड़ी भावना का अनुभव कर सकते हैं।

अपने आप में धैर्य रखें
माइंडफुलनेस एक अभ्यास है, और किसी भी अभ्यास की तरह, इसे विकसित होने में समय लगता है। रातोंरात दिमागीपन का स्वामी बनने की अपेक्षा न करें। अपने आप के साथ धैर्य रखें और रास्ते में छोटी-छोटी जीत का जश्न मनाएं। समय के साथ, आप पाएंगे कि सचेतनता आसान और अधिक स्वाभाविक हो जाती है।

इन अभ्यासों को  अपने दैनिक जीवन में शामिल करके, आप सचेतनता की एक मजबूत भावना विकसित कर सकते हैं और अपने जीवन में अधिक जागरूकता पैदा कर सकते हैं। इसलिए वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रत्येक दिन कुछ समय निकालें, और अधिक सचेतन जीवन जीना शुरू करें।

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आप दुनियाभर के पाप पत्नी के बिना कर सकते हो परन्तु पुण्य करने के लिए सहधर्मिणी जरूरी है।

आप दुनियाभर के पाप पत्नी के बिना कर सकते हो परन्तु पुण्य करने के लिए सहधर्मिणी जरूरी है। Read More »

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गृहस्थ जीवन की सफल उड़ान के लिए “समझशक्ति” और “सहनशक्ति” रुपी दो पंखों का होना अति आवश्यक है।

गृहस्थ जीवन की सफल उड़ान के लिए “समझशक्ति” और “सहनशक्ति” रुपी दो पंखों का होना अति आवश्यक है। Read More »

Didi Maa Ji

प्रकृति अपने साथ खिलवाड़ करने वालों से नाराज हो रही है, यदि आज हम इस संकेत को नहीं समझे तो कल तक बहुत देर हो चुकी होगी। प्रकृति का रक्षण मतलब प्राणी जगत की जीवन रक्षा।

प्रकृति अपने साथ खिलवाड़ करने वालों से नाराज हो रही है, यदि आज हम इस संकेत को नहीं समझे तो कल तक बहुत देर हो चुकी होगी। प्रकृति का रक्षण मतलब प्राणी जगत की जीवन रक्षा। Read More »