चलो- बना लें अपने हृदय को अयोध्या और मथुरा, और मन को गौरी शंकर। आपके हृदय का एक भाग अयोध्या और दूसरा मथुरा। आपके आज्ञा चक्र में काशी स्थित है। विचार करना कि जब देवालय जाते हो तो इस बात का ध्यान रखते हो कि अपवित्र मन को लेकर मंदिर नहीं जाना है। मंदिर को किसी भी प्रदूषण से प्रदूषित नहीं करना है। स्वयं के बनाए हुए मंदिर का तो इतना ख्याल रकते हो लेकिन ईश्वर के द्वारा निर्मित इस शरीर रूपी मंदिर का ज़रा भी ख्याल नहीं रखते। काया के मंदिर में विराजमान साक्षात् परमात्मा का ख्याल कौन रखेगा ?
काया के इस देवालय को पवित्र करने का अवसर है मानव जीवन। ज़रा देख लें कि मन के इस आँगन में कहीं ईर्ष्या – द्वेष और संशयों के झाड़ -झंखाड़ तो नहीं उग आए। साधना करने के पूर्व आत्म निरक्षण बहुत ज़रूरी है। हमारा अपना आत्मावलोकन हमे निर्मल बनता है।